कृषि भूमि का एक टुकड़ा भारत के अधिसंख्य परिवारों के लिये सब कुछ होता है। निजी प्रयोजनों के लिये इस भूमि के जबरन अधिग्रहण के किस्से कम नही हो रहे हैं। जबरिया अधिग्रहण के इस अभिशाप से किसानों को मुक्ति की तलाश आज भी है। राजनीतिक प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति की कमी इसके लिये बनाये गये प्रावधानों को समुचित रूप से लागू होने में बाधक सिद्ध हो रहे हैं। भू-स्वामी की सहमति के बिना भूमि का अधिग्रहण किया जाना, न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता, प्रतिरोधक सामाजिक शक्तियों की विफलता सब पर्त् दर पर्त् यहाँ उभर रहे हैं,साथ ही क्षद्म विकास के नाम पर उद्योगों की अनियोजित स्थापना सब कुछ कठघरे में खड़े दिखते हैं यहाँ...
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